भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे मन का सूनापन / आनंद खत्री
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 6 दिसम्बर 2017 का अवतरण
कल मैं बहुत खेली थी
मेरी छुट्टी थी
माँ भी नहीं थी
पापा भी कहीं थे
थी बस एक बहन,
जो मुझसे बंधी थी
और मुझ सेजुड़ी थी
दादी के साए से पली
बाबा की कहानियों में बड़े हुए थे
हमारे बचपन के दिन
शायद माँ होतीं तो
रात के पहले पाँव धुलवाती
या पापा होते तो सोते ही मेरे पैर
पोछे जाते,
और मैं सोने का नाटक कर करवट बदलती
कल मैं बहुत खेली थी
मेरी छुट्टी थी
माँ भी नहीं थी
पापा भी कहीं थे