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मेरे मन का सूनापन / आनंद खत्री

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कल मैं बहुत खेली थी
मेरी छुट्टी थी
माँ भी नहीं थी
पापा भी कहीं थे
थी बस एक बहन,
जो मुझसे बंधी थी
और मुझ सेजुड़ी थी

दादी के साए से पली
बाबा की कहानियों में बड़े हुए थे
हमारे बचपन के दिन

शायद माँ होतीं तो
रात के पहले पाँव धुलवाती
या पापा होते तो सोते ही मेरे पैर
पोछे जाते,
और मैं सोने का नाटक कर करवट बदलती
कल मैं बहुत खेली थी
मेरी छुट्टी थी
माँ भी नहीं थी
पापा भी कहीं थे