भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वातायन / छवि निगम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:53, 8 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छवि निगम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अंदर हूँ मैं
देहरी की लक्ष्मण रेखा के इस पार
शहतीरें साधे
दीवारों को बांधे
आँगन ओढ़े
पैर के अगूंठे से जमीन कुरेदते
छत की आखों से लाज छिपाये
प्रतीक्षा में...
बाहर भी मैं ही हूँ
देह की देहरी के उस पार
बाहों में बादल
बिजली का आँचल
हवाओं की पायल
सपनों की ऊँची परवाज भरते
आखों में नीला आसमां सजाये
प्रतीक्षा में...
इक वातायन के।