भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिट्ठी रूठी हो क्या चार महीने से? / दीपक शर्मा 'दीप'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 23 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चिट्ठी रूठी हो क्या चार महीने से?
आओ लग भी जाओ मेरे सीने से

दर्द बहक जाता है थोड़े वक़्फ़े को
दर्द वगरना कम होता है पीने से?

‘जो मर जाते हैं वे मरते थोड़े हैं
वे तो केवल बच जाते हैं जीने से’

ना जाने क्या सुलगा कर के निकला है
गोया हरदम राख उड़े है सीने से

ख़बर नहीं हो पायी हम को मरने की
ऐसे लेकर निकला जान करीने से