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किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम / वली दक्कनी

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किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता—अहिस्ता

के आतिश गुल को करती है गुलाब आहिस्ता—आहिस्ता


वफ़ादारी ने दिलबर की बुझाया आतिश—ए—गुल कूँ

के गर्मी दफ़्अ करता है गुलाब आहिस्ता—आहिस्ता


अजब कुछ लुत्फ़ रक्खा है शब—ए—ख़िल्वत में गुलरू सूँ

ख़िताब आहिस्ता—आहिस्ता जवाब आहिस्ता आहिस्ता


मेरे दिल कूँ किया बेख़ुद तेरी अखियाँ ने आख़िर कूँ

के ज्यूँ बेहोश करती है शराब आहिस्ता—आहिस्ता


हुआ तुझ इश्क़ सूँ अय आतशीं रू दिल मेरा पानी

के ज्यूँ गलता है आतिश सूँ गुलाब आहिस्ता—आहिस्ता


अदा—ए—नाज़ सूँ आता है वोह रौशन—जबीं घर सूँ

के ज्यूँ मशरिक़ से निकले आफ़ताब आहिस्ता—आहिस्ता


‘वली’ ! मुझ दिल में आता है ख़्याल—ए—यार बे—परवाह

कि ज्यूँ अँखियन में आता है ख़्वाब आहिस्ता—आहिस्ता