भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँद तारे ख़्वाब में आते नहीं / संजू शब्दिता
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 30 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजू शब्दिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चाँद तारे ख़्वाब में आते नहीं
हम भी छत पर रात में जाते नहीं
वो जमाना था कि बातें थीं गुज़र
आज हम भी वैसे बतियाते नहीं
वो पुरानी धुन अभी तक याद है
पर हुआ है यों कि अब गाते नहीं
ढूंढ़ते हैं मिल भी जाता है मगर
चाहिए जो बस वही पाते नहीं
जाने क्या मंज़र दिखाया आपने
अब नज़ारे कोई बहलाते नहीं