भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रश्न / पंकज सुबीर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 30 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सुबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं कब से प्रश्न बन कर भटकता हूँ
मुझे कोई यक्ष नहीं मिलता
जो मुझे थाम ले, सहेज ले
पूछने के वास्ते
किसी युधिष्ठिर से
मैं यूँ ही निरर्थक सा भटकता हूँ
यह जानता हूँ
कि जब तक पूछा न जाए
तब तक
किसी भी प्रश्न का अस्तित्व
कोई मायने नहीं रखता
और फिर अगर
मुझे कोई यक्ष मिल भी गया
और उसने मुझे सहेज भी लिया
और फिर पूछ भी लिया
किसी युधिष्ठिर से
और अगर
युधिष्ठिर ही उत्तर नहीं दे पाया तो
तो मेरा क्या होगा?
शायद तब एक और अश्वत्थामा का जन्म होगा
अश्वत्थामा बन कर भटकने से
बेहतर है
यूँ ही प्रश्न बन कर भटकते रहना
क्योंकि
होती है अधिक पीड़ादायी
अमरता
मृत्यु से भी।