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मौन / पंकज सुबीर

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क्षितिज के उस पार क्षितिज
और
उस क्षितिज के भी उस पार
एक और क्षितिज
हर एक क्षितिज के साथ ही जुड़ी है
एक प्रतीक्षा
जो न जाने कब से
चल रही है
न जाने किसके लिए
हर एक प्रतीक्षा में
एक ठहराव है
मनो ठहर गए हों
कई युग
गुज़रते गुज़रते
यहाँ से
या कि
ठिठक गई हो
जन्म से मृत्यु
तथा
मृत्यु से जन्म
की तरफ दौड़ती सुई
समय की
हर तरफ फैल गया है
मौन
एक ठहरी हुई प्रतीक्षा का मौन।