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माँडने / पंकज सुबीर

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रोज ही माँडते हैं
माँडने
माँ के बूढ़े हाथ
देहरी पर घर की
छुपे होते हैं इन माँडनों में
कुछ प्रतीक चिह्न
समझा जाता है जिनको
प्रतीक
सुख, शांति और समृद्धि का
किन्तु कुछ दिनों से
कँपकँपाने लगे हैं
माँडने माँडते हाथ
माँ के
विशेषकर तब
जब बनाने होते हैं
वही शुभ प्रतीक चिह्न
लाल-कत्थई रंगों से
शायद
बनाते समय इन प्रतीक चिह्नों को
उभरने लगते हैं
कुछ और प्रतीक
मन में उनके
उभरने लगती है युवावस्था
मेरी बहन की
जो अब तक अविवाहित है
जबकि
हो जाना चाहिए था उसको विवाहित
अब तक तो
उभरने लगती है युवावस्था
मेरी
जो अब तक बेरोज़गार है
जबकि
हो जाना चाहिए था मुझको बारोज़गार
अब तक तो
वास्तव में
सुख, शांति और समृद्धि
इस घर की
निर्भर है
इन्हीं दोनों बातों पर
न कि
लाल-कत्थई रंग से बनाए जाने वाले
उन प्रतीक चिह्नों पर
इसीलिए इनको बनाते समय
काँप जाती हैं
माँ की उँगलियाँ
आजकल।