भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

‌नया वर्ष आने दो / कन्हैयालाल मत्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:56, 1 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो बीत गया है
उसे बीत जाने दो
             हँसता-मुस्काता
             नया वर्ष आने दो !

चल पड़ी सवारी प्राची से
दिनकर की
लो, करो आरती
             सद्यजात वत्सर की
             मन की वीणा को
             सामगान गाने दो !

कह गई किरण कानों में
आज सवेरे---
हैं भूत- भविष्यत्
वर्तमान के चेरे
             जो हुआ अस्तमित
             उसे शांति पाने दो !

श्रम-स्रवित गंध से
शस्त करो युग-पथ को
बढ़ने दो आगे-- बंधु,
             समय के रथ को
             इतिहासों को
             परिवर्तन नए लाने दो !

आकंठ-मग्न होकर जो
व्यंग्य-विधा में
है देख रहा लक्षणा
सहज अभिधा में
             उस छन्दव्रती के
             ताने भुगताने दो !

हँसता-मुस्काता
नया वर्ष आने दो !