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डुबक-डुबक, लहरों की रानी / कन्हैयालाल मत्त
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डुबक-डुबक, लहरों की रानी !
बोल री मछली, कित्ता पानी !
गहरे-गहरे सात समन्दर,
सौ-सौ गड्ढे जिनके अन्दर,
जिनका ओर न छोर देखकर,
घबरा गए राम के बन्दर !
समझ गए तुम कितना पानी?
इत्ता पानी! इत्ता पानी !!