भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डुबक-डुबक, लहरों की रानी / कन्हैयालाल मत्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:44, 1 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डुबक-डुबक, लहरों की रानी !
बोल री मछली, कित्ता पानी !

             गहरे-गहरे सात समन्दर,
             सौ-सौ गड्ढे जिनके अन्दर,

जिनका ओर न छोर देखकर,
घबरा गए राम के बन्दर !

             समझ गए तुम कितना पानी?
             इत्ता पानी! इत्ता पानी !!