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परबतिआ / महेंद्र 'मधुप'

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परबतिआ मर गेलई
केतना दिन से रहई बीमार
कोनो देखे-सुने वाला न रहई
जिनगी भर खाए-पीएला
उ तरसइते रहल,
देखे में ऊ बरा निम्मन रहे
गाँओ के मनचला लरिका सब
ओकरा ऊपर जान निछाबर करइत रहे
बाकि ऊ केकरो हाथ न आएल
ऊ तकलीफ केतना सहो
दवा आ रोटी के लेल
गाँओ के जमींदार के घर में गेल
ऊ जमींदार ओकरा भरमा के
अपना पीछे वाला कोठरी में ले गेल
जमींदार एड्स के सिकार रहे,
आई बिना दवा-दारू के
एक रोटी ला तरपइत
परबतिआ अप्पन परान त्याग देलक।