भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिसुखी गईया / सरोज सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:27, 23 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhojpu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूध के धार जब देह में सूखे लागेला
अउर थन ओकर लागेला सिकुड़े
तब उ बेदखल हो जाले
आपना ही परिवार से
बीरद्धाश्रम
अभी बनल नइखे
तब्बे त उ मरुँआइल
गली मोहल्ला में बउड़ीआत
चर जाले... कचरा में पड़ल
बासी अख़बार के मनहूस ख़बरन के
अउर फेर...
जीनगी के चौराहा पs
बईठ के पगुरावत
हेरा जाले, आपन सुनहर अतीत में
जहाँ ओकर गाभिन भइल
रम्भाइल, बियाइल
एगो तेवहार रहल
मन परली ओकरा
उ बूढ मलकाइन ,जे अब नईखी
जेकर आँखी में ,ओकर पूंछ पकड़ के
वैतरणी पार करे के लालसा रहल
उ इयाद करेले,आपन पुरखिन के
जेकर पीठी प बसुरी फूंक के
कृष्ण ब्रम्हांड डुला देले रहन
पगुरावल ओरइला पर
वर्तमान ओकरा के ,देह व्यापार खातिर
कसाईबाड़ा के रास्ता देखावेला
उ एकरा से दहसत खाय
ओकरा पहीले ही
केहू झनकत झल्लात
ओकर पसली में कोहनी मार के
"दुर्र हट हट" कहत
चउराहा से हाँक देला