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समय एक छन्नी है / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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समय एक छन्नी है
शिलाखण्ड है मनुज भेस में
सिर मत टकरा
इनसे अपना

गिरगिट जैसा रंग बदलते
हों जो पल में
चमक उठे कुछ जादू-सा
जिनके करतल में
टूटेगा ही देखा था क्यों
बंद ऑंख से तून सपना

अभी ग्रहों का योग प्रबल है
कुछ भी कह ले
सहा बहुत है तूने अब तक
यह भी सह ले
बंधु तुझे ये सिखलाते हैं
क्रोध अनल में
हॅंस कर तपना

तेरा जीवन नदिया की धारा की लय है
किन्तु सफर में रोड़े मिलना
भी तो तय है
समय एक छन्नी है
गहले सार और
थोथे को दफना

जोड़ नहीं पाया
कुछ भी सीखा
नहीं बाबरे
पेड़ों से तूने

जब-जब नदी डालियॉं
फल से, तरू झुक जाते हैं
पंछी इनकी छाया में
आकर रूक जाते हैं
पाथर खाकर फल टपकाते
प्रतिफल में दूने

नई दिशाओं से तू खुद को
जोड़ नहीं पाया
घिसी-पिटी लीकों से
खुद को मोड़ नहीं पाया
छोड़ अगर
कुछ गुर सीखें हैं भेड़ों से तूने