भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहाड़ी के पीछे / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:49, 5 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय चोरमारे |अनुवादक=टीकम शेखाव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पहाड़ी के पार
क्यों नहीं दिख पाता
कुछ भी?
दिखता था कल तक
सबकुछ...
मन्दिर में चहल-पहल
हर रोज़..
तो कभी
श्मशान की भीड़
अरे....अरे....
तोड़ लिए किसी ने
सितारे भी अभी-अभी
और...
यह किसने रोक दिया
हवा को?
अब तो…
आवाज़ें भी बन्द हो गई हैं
पहाड़ी के पीछे से !
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत