हाइकु / भाग 1 / कुमुद बंसल
1
नींद आँखों से
छूटी ज्यो डोर से
पतंग टूटी।
2
मानव-अग्नि
दावानल बनके
वन दहके।
3
पर्वत, वन
वादियों नदियों को
ढूँढता मन।
4
गिरि निष्प्राण
हमसे माँग रहे
थोडा सम्मान।
5
मेरी पलकें
सागर से गहरे
भेद छिपाएँ।
6
सागर तट
फैला यादों का झाग
काल–उर्मियाँ।
7
लहर देती
शँख सीपियाँ-धन
मचला मन।
8
हैय्या हो हैय्या
मछुआरे का गीत
जलधि मीत।
9
होती थकान
दुःख-भरे गीतों से
सुन अजान!
10
खुशियाँ बोलीं-
' मैं आऊँ तेरे पास
फैलाले झोली? '
11
व्यस्त जीवन
चैन के कुछ छिन
माँगे ये मन।
12
वक़्त की धूल
धुँधला देती अक्स
रिश्तों का रक्स।
13
पँख फैलाए
भरती हूँ उड़ान
मन की मान।
14
मन बुहारा
शून्यता बन गई
प्रेम की धारा।
15
मन–भीतर
बजे बाँसुरी–धुन
मन से सुन।
16
हूँ प्रणयिनी
परम आनन्द की
मन भावनी।
17
मधुर स्वर
सुनती हूँ गुंजार
हृदय–द्वार।
18
प्रेम की सुधा
बरसे चहुँओर
तृप्त वसुधा।
19
तृप्त वसुधा
बादलों से पूछती
पिलाऊँ सुधा?
20
आनन्द छाया
सुधा कण्ठ उतरा
शान्ति पसरी।
21
नेह–साँचे में
ढली पिता की डाँट
शब्द सपाट।
22
उनकी आँखें
टपकाती थी नूर
अँधेरा दूर।
23
दिशा दिखाती
पिता की सधी बातें
कटती रातें।
24
मेरे आधार
पिता थे छायादार
थे सुखधार।
25
तपती देह
माँ की हथेलियों से
टपके नेह।