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हे सारस्वत! कविवर / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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साधनासिन्धु के मौक्तिक वर संस्कृति के पूजक सरल सन्त।
      मैं नमन कर रहा हूँ अनन्त।

हे अमर भारती के सपूत,
अक्षर आराधक राष्ट्रभक्त।
हे सारस्वत! कविवर! प्रणम्य,
परमारथरत हे अनासक्त।
अभिनव कवियों के सम्पोषक प्रेरणास्रोत गुण ज्ञानवन्त।
मैं नमन कर रहा हूँ अनन्त।

हो गयी लेखनी धन्य और
हो गये धन्य अक्षर अजान।
वे काल व्याल के फन ऊपर,
मुरलीधर से हैं शोभमान।
हिन्दी कविता की बगिया के बन महके पाटल प्रभावन्त।
मैं नमन कर रहा हूँ अनन्त।


कोकिल कूजन से मधुर छन्द,
दोहों का सृजन किया तुमने।
गीतों में राग भरे सुन्दर,
नव अभिनव नित्य दिया तुमने।
हे बृहद्काव्य के सृजनकार प्रतिभा वैभवधर प्राणवन्त।
      मैं नमन कर रहा हूँ अनन्त।

अक्षरवर ज्योति जगा तुमने,
जीवन को ज्योतिर्मान किया।
कविता की मोहक रजनी में,
छन्दों का मधुर विहान किया।
हे सृजनधर्म के उन्नायक! हे वसुन्धरा से धैर्यवन्त।
मैं नमन कर रहा हूँ अनन्त।