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एक दिन जियो मेरे जैसे भी / मृदुला शुक्ला

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सुनो,
कल न तुम ना
थोडा जल्दी उठ जाना
ज्यादा नहीं
बस सुबह पाँच बजे
सुबह बहुत ठण्ड है
मुझे चाय रजाई में ही दे देना
और फिर घर में बस थोड़े से ही तो काम होते हैं
सफाई/बर्तन/खाना/नाश्ता/कपड़े
और फिर मेड तो है ही मदद के लिए

फिर
कोई तुम मेरी तरह कामचोर थोड़ी
तुम ये सब कर ही सकते हो
और हाँ मेरे कपडे निकालना मत भूलना
मुझे मिलते नहीं तुम्हारी अलमारी में

सुनो,
जब तुम ऑफिस के लिए निकलोगे
तो वाचमैन तुम्हे नमस्ते करने के बाद
भीतर तक स्कैन भी करेगा

और हाँ,
बस कंडक्टर तुम्हे टिकट देते समय
और पैसे लेते समय
जानबूझ कर तुम्हारी उंगलियों को छुएगा
तो क्या तुम्हे भी लगा
कि हज़ारों छिपकलियाँ रेंग गयीं तुम्हारी देह पर

एक और बात,
जब तुम्हारा बॉस आँखों ही आँखों में
तुम्हे कुछ समझाने की कोशिश करेगा
तो तुम देखना
सब कुछ समझ के भी नासमझ बन पाते हो की नहीं

आज तो मैं ज़िम्मेदार हूँ तुम्हारी तरह
अच्छे से मन लगाकर काम करूँगी
घर गृहस्ती भूल कर

और सुनो,
तुम ऑफिस में कामचोरी मत करना मेरी तरह
लेकिन हाँ,
बस घर पर ३-४ बार फोन कर लेना
बच्चे आए/खाना खाया/होमवर्क किया?

सुनो,
जब तुम वापस आओगे न?
तो बच्चे तुम्हे सहमे हुए मिलेंगे
परेशान मत होना
उन्हें आदत है
मेरे मूड के सही होने का इंतज़ार करने की

और जब मैं शाम को वापस आउंगी
तो वर्मा जी के साथ हुए पार्किंग के झगडे
बॉस के साथ हुई खटपट
कलीग की खिट पिट
सबकी गठरी बना कर लाऊँगी
और तुम्हारे सर पे रख दूंगी
शायद जहाँ दिमाग होता है
और फिर तुम मुझसे पूछना
थक गए हो क्या?
चाय बना दूँ?

यही तो तुम चाहते हो मुझसे

मेरी छोटी-छोटी जिम्मेदारियां तुम्हे भरी तो नहीं लगी?
मैं नहीं निभा पाऊँगी तुम्हारी बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियाँ
ये सब तो सिर्फ आज के लिए था
मैं तो तुमसे प्रेम करती हूँ
और प्रेम में भी पात्रता से ज्यादा
न लिया जाता है
और न ही
दिया जाता है