एक नाज़ुक ख्याल आया है / विजय वाते
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एक नाज़ुक ख्याल आया है|
अब ग़ज़ल में कमाल आया है|
चौंध ऐसी, की कुछ नहीं दिखता,
रूप क्या बेमिसाल आया है|
हम में ऐसा भी क्या ख़ास है जी,
कितना भोला सवाल आया है|
ये उदासी भी क्या उदासी है,
एक भीगा रुमाल आया है|
हमने जब-जब भी उसको सोचा है,
शायारी में ज़माल आया है|