विजय कुमार पुरी
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जन्म | 09 नवम्बर 1935 |
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उपनाम | अरुण |
जन्म स्थान | अमृतसर, पंजाब |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
विजय 'अरुण' / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- कभी है अमृत, कभी ज़हर है, बदल-बदल के मैं पी रहा हूँ / विजय ‘अरुण’
- मंज़िल इतनी दूर रहेगी, यह कब सोचा था / विजय ‘अरुण’
- काम अधूरे पूरे करना बस यह सोचा था / विजय ‘अरुण’
- मेरा कोई शत्रु नहीं, कोई मित्र नहीं / विजय ‘अरुण’
- जब भी दिल में उफान आता है / विजय ‘अरुण’
- मेरी उस से बात अगर हो चमत्कार होगा / विजय ‘अरुण’
- सौ बीहड़ मरुथल पार किए तब कहीं यहाँ तक आया हूँ / विजय ‘अरुण’
- दुख का परबत जब भी मेरी राह में लाया गया / विजय ‘अरुण’
- ग़म के शहर से निकल तो आया पर किस ओर तू जाएगा / विजय ‘अरुण’
- कब से गोरी है घूंघट में / विजय ‘अरुण’
- मेरे नाम की ग़ैर भी लगे माला जपने, / विजय ‘अरुण’
- तेरा रूप निखर कर जब शृंगार में आया / विजय ‘अरुण’
- और किसी ने लूटी थी, या खुद मैं ने ही लूटी थी / विजय ‘अरुण’
- वह बदलेगा, यह जब सोचा बदल कर ही तू दम लेगा / विजय ‘अरुण’
- अब जीवन में कहाँ हैं वे दिन / विजय ‘अरुण’
- हसीन आँखों की बात हो या / विजय ‘अरुण’
- इश्क़ ने बर्बाद कर दी ज़िन्दगी, हाए रे इश्क़ / विजय ‘अरुण’
- तेरा मिलना है मिलना ख़ुशी का / विजय ‘अरुण’
- दिल के दरिया में चाँद जब उतरा / विजय ‘अरुण’
- ऐ बशर! तब तिरी दुनिया में उजाला होगा / विजय ‘अरुण’
- मिरी चाहत, मिरी राहत, मिरी जन्नत तुम हो / विजय ‘अरुण’
- शेख़ साहिब! शराब पी लीजे / विजय ‘अरुण’
- हाले दिल मेरा सुनो अपना सुनाओ यारो / विजय ‘अरुण’
- अगर मुझ पर तिरी चश्मे करम इक बार हो जाए / विजय ‘अरुण’
- वो ख़ुदा है तो वह नायाब नहीं हो सकता / विजय ‘अरुण’
- ये दुनिया है फ़रेबी, चल सकोगे / विजय ‘अरुण’
- शर्म के बेजा लबादे से ज़रा बाहर आ / विजय ‘अरुण’
- जांगुसल नग़्मा था, क्यों गाया गया / विजय ‘अरुण’
- जो मेरे दिल को भा जाए कहाँ वह इन हसीनों में / विजय ‘अरुण’
- मिरे महबूब! नान्देश! पत्थर दिल! ख़ुदा हाफ़िज़ / विजय ‘अरुण’