भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल के तपते सहरा में यूँ तेरी याद / साग़र पालमपुरी

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:24, 29 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी }} Category:ग़ज़ल दिल के तपते सहरा मे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल के तपते सहरा में यूँ तेरी याद का फूल खिला

जैसे मरने वाले को हो जीवन का वरदान मिला


जिसके प्यार का अमृत पी कर सोचा था हो जायें अमर

जाने कहाँ गया वो ज़ालिम तन्हाई का ज़हर पिला


एक ज़रा —सी बात पे ही वो रग—रग को पहचान गई

दुनिया का दस्तूर यही है यारो! किसी से कैसा गिला


अरमानों के शीशमहल में ख़ामोशी , रुस्वाई थी

एक झलक पाकर हमदम की फिर से मन का तार हिला


सपने बुनते—बुनते कैसे बीत गये दिन बचपन के

ऐ मेरे ग़मख़्वार ! न मुझको फिर से वो दिन याद दिला


इन्सानों के जमघट में वो ढूँढ रहा है ‘साग़र’ को

अभी गया जो दिल के लहू से ग़ज़लों के कुछ फूल खिला