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सोचिए क्या साथ लेके जाएँगे / सूरज राय 'सूरज'
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सोचिए क्या साथ लेके जाएंगे।
मौत को शर्मिंदगी दे जाएंगे॥
पत्थरों के जिस्म महकें, इसलिये
जिस्म तो फूलों के पीसे जाएंगे॥
नाव है काग़ज़ की, काग़ज़ के हैं नोट
आप दरिया पार कैसे जाएंगे॥
रस्मों की जिस्मों की इज़्ज़त लूटकर
लोग इज़्ज़तदार समझे जाएंगे॥
मरघटों की दास्तां होगी ज़मीन
ज़िंदगी तो आसमां ले जाएंगे॥
देख लेना चाँद- "सूरज" एक दिन
कौड़ियों के भाव बेचे जाएंगे॥