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सामने ग़ैर के मुस्कुराया करो / सूरज राय 'सूरज'

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सामने ग़ैर के मुस्कुराया करो।
पर हर इक दर्द मुझको बताया करो॥

शर्त ताली के बजने की है हाथ दो
दुश्मनी ही सही पर निभाया करो॥

कैंचियाँ इस ज़माने की फ़ि तरत में हैं
हर जगह यूँ न पर फड़फड़ाया करो॥

जिस्म के साथ आदर्श नंगे न हों
सोच कर ये भी कपड़े सिलाया करो॥

पार्टी, केक, दारू से शिक़वा नहीं
पेड़ भी जन्मदिन में लगाया करो॥

रास्ते में तुम्हारे ही तुर्बत मेरी
बस निग़ाहों ही से आया जाया करो॥

प्यार, ईमां, वफ़ा, सच, यक़ीं, दोस्ती
बेवजह के न मुद्दे उठाया करो॥

बोल उठेंगे इक दिन सभी देखना
आईना पत्थरों को दिखाया करो॥

चाहते हो जो सब में वह क्या तुम में है
ख़ुद को भी तो कभी आज़माया करो॥

ख़त्म बच्चों की न रीढ़ की हो लचक
पीठ ग़लती में मत थपथपाया करो॥

स्याह पड़ने लगा आँख के नीचे अब
रात को ख़ुद को जल्दी सुलाया करो॥

लाख़ दहशत के "सूरज" उगाए तो क्या
बात तब है किसी सर पर साया करो॥