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इंसान के नक़्शे में जब प्यार नहीं होगा / सूरज राय 'सूरज'

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इंसान के नक़्शे में जब प्यार नहीं होगा।
कुछ हो या न हो लेकिन संसार नहीं होगा॥

छोड़ा है जिसने दामन तेरा इन आँधियों में
वो सच में फूल होगा हाँ ख़ार नहीं होगा॥

आई है मौत दर में फैलाये दोनों बाज़ू
मुझसे तो किसी सूरत इंकार नहीं होगा॥

लोगों का सर कटा के सर जिसका सलामत है
वो मेरे क़बीले का सरदार नहीं होगा॥

होके निहत्था दुश्मन पैरों पर गिर पड़ा है
ये छल ही सही, हमसे अब वार नहीं होगा॥

अब जितना भी ख़सारा हो ख़ुशियों की तिजारत में
पर आँसुओं का हमसे व्यापार नहीं होगा॥

जुगनू हो या दिया हो मेहनत से कमाएँगे
ख़ैरात में तो "सूरज" स्वीकार नहीं होगा॥