भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुप्पा कवि / सीमा संगसार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:05, 6 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा संगसार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शब्द खामोश नहीं होते
उनके स्वर और मात्राएँ
मिलकर बनाते हैं
हमेशा ही नई कोई व्यंजना!
एक कवि
कभी चुप नहीं बैठता
चुप्पा कवि
दरअसल
चढ़ा रहा होता है
अपनी कविता पर शान...
बाज समय के
क्रूर अहसासों को
फड़ङ़ाते हुए वह
समेट रहा होता है
चंद उबलते हुए हालात को
जिनके गर्म लहू के छींटे
यदा-कदा
गिरते रहते हैं
उसके बदन पर
और वह
और तेज / और तेज
करता जाता है
अपनी धार को
और भी पैना
बिन कहे
चुपचाप...