भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राखी / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:59, 6 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदनान कफ़ील दरवेश |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहनें
नहीं आईं
इस बार भी
आतीं भी
तो किस रास्ते
जबकि रास्ते भूल चुके थे मंज़िल
भाइयों की कलाइयाँ सूनी थीं
राखियाँ
राख में धँस गयी थीं
बहनें
राख
बन चुकी थीं...
(रचनाकाल: 2016)