भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोची नि कभी / महेंद्र सिंह राणा आज़ाद

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 10 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेंद्र सिंह राणा आज़ाद }} {{KKCatGadhwaliRachn...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोची नि कभी कुछ इनि ह्वै जालु
आँख्यू मा आँसू नि तब भी रुवै जालु।

इक पंछी आली रैबार माँ कु ल्यै के
समूण सिराणा धौरी वु चली जालु।

जुगराज रै ए पंछी धन तेरो घरबार
घ्वोल छोड़ी कै ए पंछी प्वोथिल उड़ी री जालु।

खूब रै होलु दुख तेरा गात भी
पंख ल्गै उड़्ग्या ह्वाला जब तेरा मयालु।

दुख अपणु छोड़ी, दर्द मेरी माँ कु
इन बिँगाई ए पंछी अब समोदर बौगी जालु।

बिँग्लु क्वै क्या तेरा मन की बात
अपणी खैरी बिपदा मा सब उड़ी जालु।