भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किताबे इश्क़ में ये कब लिखा है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किताबे इश्क में ये कब लिखा है
मुहब्बत में वफ़ा का सिलसिला है

करे राहे मुहब्बत में वफ़ा जो
उसे पागल का ही रुतबा मिला है

मिलाते ही नज़र मुँह फेर लेना
यही तो हुस्न वालों की अदा है

रहो बस दूर उल्फ़त की खता से
किसी को चैन कब इस ने दिया है

बहाना अश्क़ औ बेचैन रहना
यही तो इश्क़ वालों की सज़ा है

भटकते ही रहें मायूस हो कर
ग़मे फुरकत में आँसू ही पिया है

हो मिर्ज़ा साहिबा या हीर लैला
किया इस इश्क़ ने किस का भला है