Last modified on 13 मार्च 2018, at 17:45

टूट जाये हों न इतनी सख्तियाँ / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:45, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

टूट जाये हों न इतनी सख़्तियाँ
जानती हैं आजमाना तल्खियाँ

गुफ़्तगू से जख़्म तो भरता नहीं
बस सुकूँ देती हैं कुछ हमदर्दियाँ

अश्क़ यों गिरने लगे रुख़सार पर
अब कहाँ बाक़ी रहीं वो शोखियाँ

हर खबर कोई बशर पढ़ता नहीं
देखता है यह ज़माना सुर्खियाँ

जिंदगी है बाँटता सब को शज़र
किसलिये बनती हैं दुश्मन आँधियाँ

आदमी कोई ख़ुदा होता नहीं
हर किसी इंसान में हैं खामियाँ

दौर दहशत का है आया इस क़दर
हर तरफ दिखने लगीं बरबादियाँ