भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निगाहों से निगाहें तो मिला लो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:03, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
निगाहों से निगाहें तो मिला लो
जहाँ हो पास अपनों को बुला लो
तुम्हारे ही हवाले जिन्दगानी
इसे जिस ओर जी चाहे चला लो
चमन में अब हवाएँ चल रही हैं
जरा खुशबू हवाओं की मिला लो
तुम्हारे बिन बड़ा बेचैन है दिल
न भूले हम तुम्हे तुम ही भुला लो
अँधेरों में भटक जाना है मुमकिन
मुसाफ़िर हो मशालें तो जला लो
सहर आवाज़ देती जाग जाओ
गुलों पर बूँद शबनम की खिला लो
उठा सैलाब हैं लहरें हठीली
जरा पतवार तो अपनी चला लो
चली जायेगी चल कर पास मंजिल
चला ग़र कोशिशों के सिलसिला लो
सफर की मुश्किलें आसान होंगी
उमीदों का कोई दीपक जला लो