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जी मुहब्बत से भर गया कब का / रंजना वर्मा

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बिना वजह दिल जला रहा था
वो रेत यूँ ही उड़ा रहा था

गुजर रहा था सभी से बच कर
न जाने क्या गुल खिला रहा था

न जाने था ग़म क्या जिंदगी में
जो वो सभी से छुपा रहा था

किये था बैठा निगाह नीची
वो खुद से नज़रें बचा रह था

जवाब देना पड़े न उस को
इसी से बातें घुमा रहा था

नहीं मिली माँ की गोद जिसको
न कोई उस को सुला रहा था

उठीं समन्दर में खूब लहरें
सभी किनारे डुबा रहा था