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आप ही तो शामिल हैं वक्त के नज़ारों में / रंजना वर्मा

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आप ही तो शामिल हैं वक्त के नजारों में
वरना अब रखा क्या है मौसमी बहारों में

जिंदगी तो जैसे इक टूटा हुआ प्याला है
मुरझाई कलियाँ हैं गुंथे हुए हारों में
जान ही नहीं पाये चाल वक्त की अब तक
हम भी हो गए शामिल आज घुड़सवारों में

बदनसीब कहलाते जो न सहारा पाते
जिंदगी हुई है गुम आज बेसहारों में

प्यास जो जमाने की देख कर चली आयी
बंट गयी नदी है वही आज कई धारों में

शिद्दतों से हम ने अरमान कुछ सँजोये थे
दर्द कर गया शामिल हम को ग़म के मारों में

सूझता नहीं कुछ जब भूख है सताती तो
सत्य भी खड़ा होता झूठ की कतारों में