भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र भर इंतज़ार कर आये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रंग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उम्र भर इंतज़ार कर आये
काश उनकी कोई ख़बर आये
राह पर आँख बिछाये बैठे
इस तरफ वह नहीं मगर आये
मेरी मंजिल तलक जो जाती हो
राह ऐसी कोई नज़र आये
धूप तीखी है पाँव जलते हैं
छाँव वाला कोई शज़र आये
थे शहर में तलाशते रोजी
लौट फिर आज अपने घर आये
रहजनों की ही भीड़ है दिखती
बन के कोई तो राहबर आये
तीरगी घेर रही है हरसूं
शब ये गुजरे कभी सहर आये