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तुम्हें जिस ओर भी रस्ता मिलेगा / रंजना वर्मा

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तुम्हें जिस ओर भी रस्ता मिलेगा
हमारा ही वहाँ चर्चा मिलेगा

फ़क़त सच्चाइयाँ है जो दिखाता
वो हर इक आइना टूटा मिलेगा

अगर हरियालियाँ यूँ ही मिटीं तो
नहीं फिर धूप में साया मिलेगा

न रोको राह दरिया की कभी भी
समन्दर से किसी दिन जा मिलेगा

अगरचे दोस्त बन जायें किताबें
न दिल तुम को कभी तन्हा मिलेगा

लगा दो पेड़ पौधों की कतारें
जहाँ पूरा तुम्हे महका मिलेगा

भटकते ही रहोगे रास्तों पर
न ग़र दीपक कोई जलता मिलेगा