भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो आँसू पीके हँसना जानता है / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जो आँसू पीके हँसना जानता है
मुहब्बत को वही पहचानता है
पड़े हैं पाँव में जिसके भी छाले
सफ़र की वो हक़ीक़त जानता है
भरम कल टूट जाएगा तुम्हारा
फ़रिश्ता कौन किसको मानता है
वो किसकी याद लेकर बस्तियों में
गली की ख़ाक हर दिन छानता है
शहर में फिर रहा हूँ अजनबी सा
कोई मुझको कहाँ पहचानता है