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शीर्षकहीन / जया झा
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किसी और को सौंप दूँ तो क्या
क़िस्मत तो वो मेरी ही रहेगी।
जो लिख गई लिखने वाले के हाथों
कहानी तो वो वही कहेगी।
आँखें मूंद भी लूँ मैं तो क्या
बंद पलकों से ही बहेगी।
राज कर सकती है मुझपर
बातें मेरी क्यों सहेगी?
अजूबा लगता हो लगने दो
अंधेरा होता है चिराग तले ही।