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आदिवासी / निवेदिता झा
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मन तन
आव भाव
संस्कार व्यवहार
निश्छल प्रेम बहता है जिनकी शिराओं में
पसीने के टप-टप से
धरती के फटे बिबाईयों पर नमी का
असर गाहे बेगाहे
मनमौजी से
पठार के दरारों
खुखडी की लुका छिपी निहारते
उछल कर वहाँ तलछटी पर बिठाता मन
गालो पर गड्ढे श्यामवर्ण चेहरों को
सादगी और स्नेह के आवरण
से ढँक रखा है सृष्टि ने जिसे
प्रेम मिट्टी से भी होता है
ऐसे ही कुछ यकीं से जी लेते हैं आदिवासी।