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तुम मुस्कुरा दो / निवेदिता झा

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चिड़िया मत रो
छोटी-बड़ी किसी भी उम्र की हो तुम
मत रो अब कोयल, गौरैया तुम सब

अब एक बार बज उठेगी थाप
मांदर मधुर संगीत निकालेगा ही
पेट में अन्न का टुकडा न हो भला
उम्मीद ही तो है साथ
होता यही है आदिवासी का गहना
तुम सजा लेना माँग
होने दो बारिश इस बार

तुम हँस दो फिर से
खरीद दूँगी मैं हार, पायल और मोर पंख
चलो न खेत, साथ में
क्यारियाँ भर रही है
फैल रहा है वहाँ धान का सिमटा बीज
तुम मुस्कुरा दो
गुंगु भी हँस रहा है तुम्हें देखकर शायद।