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प्यार के गीत हम गुनगुनाते रहे / रंजना वर्मा

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प्यार के गीत हम गुनगुनाते रहे
रस्म यूँ जिंदगी की निभाते रहे

है फ़लक के तले खिल रही चाँदनी
चाँद को किसलिये तुम बुलाते रहे

इस क़दर हम पे दहशत है तारी हुई
खौफ़ बन कर अँधेरे डराते रहे

था लबों पर तबस्सुम खिला हर घड़ी
अश्क़ पलकों पे फिर भी सजाते रहे

थम गये रास्ते मंज़िलें खो गयीं
बेखुदी में फ़साने सुनाते रहे

हाथ में दुश्मनों के थे खंज़र मगर
हम उन्हें ही गले से लगाते रहे

सरहदों पे जुनूँ की कमी कब हुई
क्यों लपेटे कफ़न लोग आते रहे