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छोड़िये प्यार के फ़साने को / रंजना वर्मा

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छोड़िये प्यार के फ़साने को
कौन कहता है दिल लगाने को

ये इबादत है कोई खेल नहीं
रहने दीजे यूँ आजमाने को

मान दशरथ ने बात रानी की
कह दिया राम से वन जाने को

खुद ही रावन को हैं बना देते
फिर हैं लाते उसे जलाने को

आप आँखों से हैं समझ लेते
कुछ न बाकी रहा बताने को

जन्म देकर जिसे सँवारा है
वो चला है हमें मिटाने को

बेवफ़ाई को था वफ़ा समझा
दो न इल्ज़ाम अब ज़माने को