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स्त्री की नींद / गोविन्द माथुर

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उसने स्त्री की

नींद में प्रवेश किया

एक स्वप्न की तरह नहीं


उसने स्त्री की

देह में प्रवेश किया

एक आत्मा की तरह नहीं


देह के हर छिद्र को

खोलता हुआ

वह टहलता रहा

स्त्री के यथार्थ में


स्त्री ने मन के

सभी दरवाज़े खोल दिए

उसने मन में प्रवेश नहीं किया


एक रात जब वह

प्रवेश कर रहा था

स्त्री के स्वप्न में

स्त्री के मन के

सभी दरवाज़े खुले थे


वह सभी दरवाज़ों को

बन्द करता हुआ

स्त्री के स्वप्न से निकल कर

किसी दूसरी स्त्री की

नींद में प्रवेश कर गया