भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थूं अर म्हूं / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 1 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
म्हूं दिन - रात
सोचतो रैवूं
कै
थूं म्हारै खातर
कदी कीं नीं कर्यौ
धूड़ है
थारै भायलैपणै में
पण म्हूं
आ' कदी नीं सोची
कै
थूं म्हारै खातर
भौत कुछ कर्यौ
थारो मिनखपणौ
याद क्यूं नीं रैवै मन्नै
स्यात
म्हारो सुवारथ
पसरज्यै म्हारै भीतर।