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नयनवां बरस रहल / राम सिंहासन सिंह
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ये सावन मत बरस, नयनवाँ बरस रहल।
परदेसी साजन ला जनवाँ तरस रहल।।
बरस-बरस के मेघ, लोर सब धो गेलई,
सुखल लतर-पतर हरिअर हो गेलई।
हमर ऊ घनस्याम कहाँ जे खो गेलई,
नेह लगा के कईसन बिखिया बो गलई।
सुन भुवनवाँ में मनवाँ अब दरक रहल।
ये सावन मत बरस नयनवाँ बरस रहल।।
बदरा के संग-संग बिजुरिया छमक हे,
ताल-तर्लया भी अब चम-चम चमक हे।
बेली आऊ चमेली दम-दम दमक हे,
सखियन सबके कंगना खन-खन खनक हे।
सबके साथ सजनवाँ मनवाँ हरस रहल।
ये सावन मत बरस नयनवाँ बरस रहल।।
झन-झन झिंगुर हीय में हुक जगावऽ हे,
ठनक-ठनक के ठनका खुब डरावऽ हे।
चमक-चमक के बिजुरी जी ललचाव हे,
मोरवा के ऊ नाच न तनिको भावऽ हे
बुनिया पड़े अगिनियाँ जइसे सरस रहल।
ये सावन मत बरस नयनवाँ बरस रहल।।