भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मत आँगन में दीवार बना / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 2 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=गुं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मत आँगन में दीवार बना
इस गुलशन को गुलजार बना
आंखों में हों कल के सपने
इन सपनों को साकार बना
सीमाएँ हों दुर्लंघ्य सदा
ऐसी अनुपम दीवार बना
है बाँह पसारे नीलाम्बर
तू उड़ने का आधार बना
टेढा मेढाके जीवन का पथ
इस परस् अपनी रफ्तार बना
दुश्मन भी भेद नहीं पाये
सेना की अगम कतार बना
क्या डरना झंझावातों से
निज हाथों को पतवार बना
धरती पर पांव टिकाए रख
मंजिल को पारावार बना
खबरें दुनियाँ की कह लेकिन
मत खबरों को हथियार बना