भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गलियों में छाया कितना सन्नाटा है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:41, 2 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=गुं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गलियों में छाया कितना सन्नाटा है
इंसानों ने खुद को खुद से बाँटा है
स्वार्थ भरे सारे अपनी ही हाँक रहे
कौन बताये हुआ लाभ या घाटा है
खुद को श्रेष्ठ बताने वाले हैं सारे
किसने किसको कितनों में से छांटा है
छोटी छोटी खुशियाँ ले कर जीते थे
जाने किसने आकर किया गलाटा है
नज़रों से हैं दूर चन्द्रमा मंगल भी
बढ़ते कदमों ने दूरी को पाटा है
आधा पांव ढका आधा है खुला हुआ
आज गरीबी में फिर गीला आटा है
नहीं लक्ष्य उद्देश्य न ही आदर्श कोई
बिन पेंदी लोटा थाली का भांटा है