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कली को मुस्कुराना आ गया / रंजना वर्मा

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कली को मुस्कुराना आ गया है
भ्रमर को दिल लगाना आ गया है

दिखी जब भोर की लाली गगन में
लगा मौसम सुहाना आ गया है

कमल लेने लगा अंगड़ाइयाँ जब
निशा को मुँह छिपाना आ गया है

उगा सूरज उधर प्राची दिशा में
गगन को रँग लगाना आ गया है

त्रिविध है डोलता देखो समीरण
उसे खुशबू लुटाना आ गया है

लिये वंशी खड़ा पथ पर कन्हैया
उसे गौएँ चराना आ गया हैं

चली है बेचने माखन गुजरिया
कन्हैया को चुराना आ गया है