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छोड़ नफ़रत दिल मिलाना चाहती हूँ / रंजना वर्मा
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छोड़ नफ़रत दिल मिलाना चाहती हूँ
प्यार की कलिद्याँ खिलाना चाहती हूँ
जाफ़रानी फूल खिलते हैं जहाँ पर
मैं समां वो ही सुहाना चाहती हूँ
हर किसी के दर्द को महसूस कर के
अश्क़ आंखों से बहाना चाहती हूँ
हो जहाँ बचपन हसीं खिलती जवानी
वो नई दुनियाँ बसाना चाहती हूँ
दूर कर पाऊँ जहाँ से तीरगी को
दीप की वो शक्ति पाना चाहती हूँ
जिंदगी है चार दिन की जानते सब
मैं सभी रिश्ते निभाना चाहती हूँ
दूसरों के दोष हरदम देखते जो
आईना उनको दिखाना चाहती हूँ