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अगरचे आदमी पैदा न होता / रंजना वर्मा
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अगरचे आदमी पैदा न होता
कहीं भी इश्क़ का चर्चा न होता
समन्दर अश्क़ के क्योंकर उमड़ते
ये पानी आँख का खारा न होता
हसीनों में छिपीं नाज़ुक अदायें
कभी भी दिल कोई हारा न होता
नहीं हमदर्दियाँ होतीं दिलों में
खुद का ग़र कोई प्यारा न होता
दिलों में दूरियाँ होतीं न ऐसी
जुबां मीठी कड़ा लहज़ा न होता
किसम इतनी गुलों की ग़र न होती
तो गुलशन इस कदर महका न होता
फ़लक़ पर हैं खिले इतने सितारे
कहीं इन मे कोई अपना न होता
किसी की ग़र दुआएँ साथ देतीं
लखमा नासूर में बदला न होता
तुझे अपना कभी का मान लेते
अगर तू प्यार का दरिया न होता