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जिंदगी हो गयी अकेली है / रंजना वर्मा
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जिंदगी हो गयी अकेली है
पीर पर बन गयी सहेली है
दूर तक है निगाह में सहरा
रूह इस राह पर अकेली है
काफ़िला अश्क़ का है आँखों में
बन गयी जिंदगी पहेली है
आज जैसे ठहर गया है पल
कौन कहता है उम्र झेली है
जुस्तजू वस्ल की करें कैसे
हिज्र की रात साथ खेली है
ख़्वाब आँखों में अब नहीं उगते
अश्क़ की धार अब सहेली है
पांव हैं राह पर जले जाते
चाँदनी यूँ तो बहुत फैली है