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पीर तो हिम है पिघल जायेगी / रंजना वर्मा
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पीर तो हिम है पिघल जायेगी
फिर नयी धूप निकल आयेगी
दिन खिज़ा के भी बीत जायेंगे
फिर कली खुल के मुस्कुरायेगी
ख्वाब आंखों के सभी सच होंगे
जिंदगी गीत गुनगुनायेगी
जो बुझे दीप हैं जल जायेंगे
रौशनी खूब जगमगायेगी
भय किसी नाग का नहीं होगा
छू के चन्दन को हवा आयेगी
पावनी गन्ध हवन की हरसूं
हर दिशा इक ऋचा सुनायेगी
दीद होगी न अश्क़ से पुरनम
मुस्कुराहट करीब आयेगी