है प्रतीक्षा तुम्हारी हमेशा रही / रंजना वर्मा
है प्रतीक्षा तुम्हारी हमेशा रही, तुम न आये तो' आँचल सजल हो गया
द्वार आये तुम्हारे बड़ी आस ले, फेरना मुँह तुम्हारा सरल हो गया
हम झुकाते रहे शीश नित द्वार पर, पर तुम्हे ही कभी याद आयी नहीं
नाम ले कर तुम्हारा जिये जा रहे, पर सदी की तरह एक पल हो गया
कर लिया हमने' सिंगार सोलह पिया, डाल कर मुख पे' घूँघट प्रतीक्षा करूँ
तुम उठा दो जो' आ कर के' घूँघट जरा, तो ये' सिंगार सारा सफल हो गया
एक दिन के लिये इक घड़ी के लिये, एक पल के लिये तुम पधारो यहाँ
चाहते कुछ नहीं आगमन हो अगर, सोच लें झोंपड़ा ये महल हो गया
कितने जन्मों का वादा था तुम से मगर, इस जनम भी न तुम से निभाया गया
साथ थे तो अभावों का भी क्या गिला, अब सुदिन भी है जैसे गरल हो गया
एक पल की मिलन आस में साँवरे, हम तुम्हारी डगर को निहारा करें
बस झलक एक तो हम को मिल ही गयी, संग ये जिंदगी का तरल हो गया
पग - युगल की करें नित्य ही वन्दना, साँवरे नित तुम्ही को पुकारा करें
दृष्टि हो यदि दया की हमारी तरफ, हम समझ लें कि जीवन सफल हो गया